भारतीय न्याय संहिता (B.N.S.), 2023 लागू होने के एक वर्ष बाद भी में बलात्कार के दंड संबंधी धारा में गड़बड़ी बरकरार
कठोर कारावास के उल्लेख के साथ दोनों में किसी भांति का प्रयोग सही नहीं – एडवोकेट हेमंत
चंडीगढ़ – आज से ठीक एक वर्ष पूर्व 1 जुलाई 2024 से भारत की संसद द्वारा दिसंबर, 2023 में अधिनियमित तीन नए आपराधिक कानून पूरे देश में लागू किये गए थे.
भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.), 2023 ने 164 साल पुराने इंडियन पीनल कोड (आई.पी.सी.), 1860 का, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.), 2023 ने 51 साल पुराने कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (सी.आर.पी.सी.), 1973 का जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बी.एस.ए.), 2023 ने 152 साल पुराने इंडियन एविडेंस एक्ट (आई.ई.ए.),1872 का स्थान लिया था.
बहरहाल, उपरोक्त तीन नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बीच पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एडवोकेट और कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार ( 9416887788) ने बी.एन.एस., 2023 की धारा 64(1) और धारा 68 में क्रमश: बलात्संग (बलात्कार) के लिए दंड एवं प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन (संभोग) के लिए दंड की प्रकृति सम्बन्धी बनाए गए प्रावधान और बी.एन.एस.एस., 2023 की पहली अनुसूची में उनसे संबंधित डाले गए प्रासंगिक उल्लेख में व्याप्त गंभीर गड़बड़ी का मामला उठाया था हालांकि आज एक वर्ष बीत जाने के बाद भी उसमें सुधार नहीं किया गया है.
हेमंत ने बताया कि बी.एन.एस., 2023 की धारा 64(1) (जो पूर्ववर्ती लागू आईपीसी,1860 की धारा 376(1) का नया रूप है) में उल्लेख है कि जो कोई उपधारा (2) में उपबंधित मामलों के सिवा बलात्कार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा.
हालांकि, बी.एन.एस.एस., 2023 की पहली अनुसूची में, जो अपराधों के वर्गीकरण से संबंधित है, बलात्कार के दंड को कम से कम 10 वर्ष के कठोर कारावास हालांकि जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और साथ साथ जुर्माना के रूप में निर्दिष्ट किया गया है,
इसी प्रकार बी.एन.एस., 2023 की धारा 68 (जो पूर्ववर्ती लागू आईपीसी,1860 की धारा 376सी का नया रूप है), जो प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन करने से संबंधित है, में भी दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास का उल्लेख किया गया है, जबकि बी.एन.एस.एस., 2024 की पहली अनुसूची में इसके प्रासंगिक प्रावधान में केवल कठोर कारावास का ही उल्लेख किया गया है.
अत: उपरोक्त के मद्देनजर हेमंत का तर्क है कि जब बी.एन.एस., 2023 की उक्त दो धाराओं अर्थात धारा 64(1) और 68 में कठोर शब्द का ही उल्लेख किया गया है, तो उसके साथ ‘दोनों में से किसी भांति’ का प्रयोग क्यों किया गया है, जिसका मतलब या तो कठोर अर्थात सश्रम कारावास होता है अथवा साधारण कारावास जैसा कि बी.एन.एस., 2023 की धारा 4 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है. जब कठोर शब्द का प्रयोग किया गया है, तो ‘दोनों में से किसी भांति का’ प्रयोग इसमें विरोधाभास उत्पन्न करता है.
अत: बी.एन.एस., 2023 की धारा 64 (1) में बलात्कार के दंड और इसी प्रकार धारा 68 में प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन के दंड सम्बन्धी किये गये प्रावधान में और बी.एन.एस.एस., 2023 की पहली अनुसूची में उनसे संबंधित प्रावधानों (प्रविष्टियों) में स्पष्ट गड़बड़ी व्याप्त है.
इस बीच हेमंत ने उपरोक्त विसंगति को उजागर करते हुए गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल सहित अन्य को लिखा था ताकि उपरोक्त विषय उनके संज्ञान में लाया जा सके और इसे जल्द से जल्द सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें हालांकि आज तक उस पर वांछित कार्रवाई लंबित है. ज्ञात रहे की संसद के दोनों सदनों द्वारा बी.एन.एस.(संशोधन) विधेयक पारित कर एवं उस पर भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद बी.एन.एस., 2023 की मौजूदा धाराओं 64(1) और 68 में व्याप्त उपरोक्त गड़बड़ी को सही किया जा सकता है.